मानसून जोरों पर है, और छातों के लिये तो इससे बेह्तर पूछ का समय कुछ और हो ही नहीं सकता.. इसी दौरान एक खूबसूरत सी छतरी सबसे रू.ब.रू होने जा रही है कल १० अगस्त को.. एक लम्बा इंतज़ार खत्म हुआ.. संगीत आधिकारिक तौर पर दो हफ़्ते पहले बाज़ार में उतरा है.. (हालांकि ऐसी फ़िल्मों के साथ बाज़ार शब्द बहुत बाज़ारू लगता है.. मगर क्या करें, और कोई चारा भी नहीं है) और फ़िल्म कल प्रदर्शित होने जा रही है और सोने पे सुहागा ये कि कल ही फ़िल्म को सर्वश्रेष्ठ बाल फ़िल्म के लिये राष्ट्रीय पुरस्कार के लिये चुना गया है... अब विशाल की इस छोटी सी छतरी के खुलने की इससे बेहतर घड़ी नहीं हो सकती थी..
बात संगीत की.. फ़िल्म का "टाईटल" गीत नीली आसमानी छतरी मुझे बेहद पसन्द है.. आधिकरिक तौर पे संगीत को ज़ारी हुए दो हफ़्ते ही हुए हैं, मगर इंटरनेट की कृपा से इसके गीत कई महिने पहले से सुने जा रहे हैं.. विशाल की इस छोटी सी छतरी में गुलज़ार साब के जादूई शब्दों ने ऐसे प्राण फूंके हैं कि छतरी जीवन्त हो उठी है.. गीत में एक ऐसी छतरी सुनने वलों से रू.ब.रू होती है जो चल सकती है, तैर सकती, भाग सकती है और पाजी और शैतान तो है ही.. और छतरी का ढांचा भी गुलज़ार साब ने बहुत खूबसूरती से खड़ा किया है
"अम्बर का टुकड़ा तोड़ा
लकड़ी का हत्था जोड़ा
हाथ में अपना आसमान है"
छतरी का बारिश से नाता दूसरे अन्तरे मे बखूबी पेश किया है गुलज़ार साब ने..
"बारिश से जो रिश्ता है
पानी पे मन खिंचता है
पिछली कोई पह्चान है
शायद फिर उड़ना चाहे
अम्बर से जुड़ना चाहे
भोली है अन्जान है"
गीत पेश है...
गीत : नीली आसमानी छतरी
फ़िल्म : द ब्लू अम्ब्रेला
गायिका : उपाग्ना पण्डया
संगीतकार : विशाल
गीतकार : गुलज़ार
अरे हे ~
नीली आसमानी छतरी
धरती का उड़न खटोला
डोले तो लागे हिन्डोला
उड़े कभी, भागे कभी
भागे कभी, दौड़े कभी
समझे ना माने छतरी
अम्बर का टुकड़ा तोड़ा
लकड़ी का हत्था जोड़ा
हाथ में अपना आसमान है
छतरी लेके चलती हूं
मेमों जैसी लगती हूं
गोरों का दिल बेईमान है
खूंटी कभी, लाठी कभी
लाठी कभी, छड़ी कभी
पाजी शैतानी छतरी
बारिश से जो रिश्ता है
पानी पे मन खिंचता है
पिछली कोई पह्चान है
शायद फिर उड़ना चाहे
अम्बर से जुड़ना चाहे
भोली है अन्जान है
डूबे कभी, तैरे कभी
गोते खाती जाये कभी
करे नादानी छतरी
हे हे~ हे नीली आसमानी छतरी
धरती का उड़न ख टोला
डोले तो लागे हिन्डोला
उड़े कभी, दौड़े कभी
दौड़े कभी, भागे कभी
समझे ना माने छतरी
1 टिप्पणी:
मुझे भी फ़िल्म और गीत बहुत पसन्द आए पवन जी।
'मेरा टेसू यहीं खड़ा, खाने को माँगे दही बड़ा' भी बहुत अच्छा लगा था।
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