गुरुवार, सितंबर 06, 2007

Gulzar on Sixty Years of Independence [साठ साल आज़ादी के ]

साठवें साल तक पहुँचकर जब हम उस बँटवारे को याद करते हैं तो याद आता है कि उस समय हम उसे आज़ादी का साल कहने के बजाए 'सन् 47 में बँटवारे के समय पर...' कहते थे, क्योंकि वो दुर्घटना बहुत बड़ी थी.

मगर कहीं न कहीं जाकर ऐसी चीज़ें इतिहास का हिस्सा बन जाती हैं और उसे बनने देना चाहिए न कि हर बार उन्हें झाड़-पोंछकर, खुरचकर बाहर निकालें. ख़राशों को नाख़ूनों से खरोंचा न जाए तो ही बेहतर है क्योंकि ये ज़ख़्म भर चुके हैं और उन्हें भरने देना चाहिए.

उन्हें इस सूरत मे याद करने के बजाए अब इतिहास की तरह याद करना चाहिए. जिस नस्ल ने वो बँटवारा देखा है, मेरे ख़्याल में तो वो अब उम्र के अंतिम पड़ाव पर है और वक़्त बहुत निकल चुका है, पुल के नीचे से बहुत पानी बह चुका है इसलिए अब उन्हें भी उसे कहीं न कहीं अच्छी सूरत में देखना चाहिए.

अब भी अगर उस वक़्त को उस पुराने रूप में ही याद रखेंगे तो ये जो ताल्लुक़ात अच्छे होने की राह पर है वो कभी नहीं पनपेगा. जो लोग उस वक़्त से गुज़रे हैं अब उन्हें भी मुस्कुराना चाहिए कि इतिहास था, बीत गया.

वो तमाम तस्वीरें जो मेरे ज़ेहन में हैं मैं उन्हें बदलने के लिए तैयार नहीं हूँ. मैंने अपना वो देहात उसी तरह से अपने ज़ेहन में महफ़ूज़ रखा है जो मेरी नज़मों में बार-बार आता है

ऐसा बहुत कुछ हुआ आज़ादी की जंग में. हमारे और अँगरेज़ों के बीच बहुत कुछ हुआ था. 1857 को अगर हम आज याद करते हैं तो उसे आज़ादी की पहली जंग के तौर पर याद करते हैं अब अगर हम बार-बार यही याद करते रहे कि अँगरेज़ों ने हमारे साथ ऐसा किया-वैसा किया तो फिर ज़िंदग़ी कभी आगे नहीं बढ़ सकती.

मेरी अपनी राय कुछ ऐसी है कि- हाँ साहब, एक बहुत बड़े हादसे से गुज़रे हम. मगर हम तो दूसरे विश्व युद्ध से भी गुज़रे थे तो उसे याद करते हुए कब तक चलेंगे. उसके बाद से तो रूस की, यूरोप की, अमरीका की शक़्ल बदल गई है इसलिए उसे लेकर तो नहीं चला जा सकता.

इसलिए रवैये को ज़रूर बदलना चाहिए. बल्कि मेरे ख़्याल से तो ये मीडिया का भी फ़र्ज़ बनता है कि वो भी इसका ख़्याल रखे.

'वो मेरा घर'

मेरा घर पाकिस्तान में है और मेरी पैदाइश वहाँ की है, मैं तो अपनी नज़्मों में भी यही कहता हूँ कि, 'वतन अब भी वही है पर नहीं है मुल्क़ अब मेरा'. मेरा अब मुल्क़ ये है, देश ये है और मुझे बड़ा फ़ख़्र है हिन्दुस्तान पर.

मगर मेरा वतन, मेरा जो जन्म स्थान है उससे तो मैं अलग नहीं हो सकता.

मेरा जो घर है वो दीना में है, वहाँ के लोगों से मेरा वास्ता है. दीना के लोग दुनिया भर में फैले हुए हैं और जिन लोगों को मालूम है कि मैं भी दीना से हूँ वो मुझे ख़त लिखते हैं सिर्फ़ इसी रिश्ते से कि वो भी दीना से हैं.

बँटवारे पर बनी फ़िल्म का एक दृश्य
बँटवारे पर हिंदी सिनेमा में कई फ़िल्में बनी हैं

कुछ लोगों ने तो वहाँ की गलियों की तस्वीरें लेकर भेजी हैं. एक साहब ने मुझे दीना स्टेशन की एक तस्वीर भेजी और नीचे लिखा है कि इसकी शक़्ल सूरत आज भी वैसी ही है. इसकी हर एक ईंट अँगरेज़ों के ज़माने की बनाई हुई है.

मगर तस्वीरों से मैं अंदाज़ा लगा रहा था कि उसमें एक जनाना हिस्सा और अलग बन गया है और वहाँ पहले जो रेलवे का एक ही ट्रैक हुआ करता था अब वहाँ तीन ट्रैक बन गए हैं.

वहाँ दीना के जिस बाज़ार से हम गुज़रा करते थे, जहाँ रहा करते थे वहाँ एक आशिक़ अली फ़ोटोग्राफ़र हैं. उनके ख़त आए, उन्होंने तस्वीरें लेकर भेजीं और उस गली का पता भी लगाया.

जब मेरे बाबा जनाब अहमद नदीम क़ासमी बीमार थे तब मैं लाहौर गया था मगर मैं दीना नहीं गया और उसकी ख़ास वजह है.

वहाँ काफ़ी तरक़्क़ी हो चुकी है. अब वहाँ हाईवे बन गया है. जिसे शेरशाह सूरी मार्ग कहते हैं या जिसे हम जीटी रोड कहते थे, वो वहाँ का हाईवे है.

यानी शक़्ल सूरत काफ़ी बदल गई है और वो तमाम तस्वीरें जो मेरे ज़ेहन में हैं मैं उन्हें बदलने के लिए तैयार नहीं हूँ. मैंने अपना वो देहात उसी तरह से अपने ज़ेहन में महफ़ूज़ रखा है जो मेरी नज़मों में बार-बार आता है.

(बीबीसी संवाददाता मुकेश शर्मा से बातचीत पर आधारित)

[ आभार : http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/story/2007/08/070806_gulzar.shtml
]

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Oi, achei seu blog pelo google está bem interessante gostei desse post. Gostaria de falar sobre o CresceNet. O CresceNet é um provedor de internet discada que remunera seus usuários pelo tempo conectado. Exatamente isso que você leu, estão pagando para você conectar. O provedor paga 20 centavos por hora de conexão discada com ligação local para mais de 2100 cidades do Brasil. O CresceNet tem um acelerador de conexão, que deixa sua conexão até 10 vezes mais rápida. Quem utiliza banda larga pode lucrar também, basta se cadastrar no CresceNet e quando for dormir conectar por discada, é possível pagar a ADSL só com o dinheiro da discada. Nos horários de minuto único o gasto com telefone é mínimo e a remuneração do CresceNet generosa. Se você quiser linkar o Cresce.Net(www.provedorcrescenet.com) no seu blog eu ficaria agradecido, até mais e sucesso. (If he will be possible add the CresceNet(www.provedorcrescenet.com) in your blogroll I thankful, bye friend).

बेनामी ने कहा…

Oi, achei seu blog pelo google está bem interessante gostei desse post. Gostaria de falar sobre o CresceNet. O CresceNet é um provedor de internet discada que remunera seus usuários pelo tempo conectado. Exatamente isso que você leu, estão pagando para você conectar. O provedor paga 20 centavos por hora de conexão discada com ligação local para mais de 2100 cidades do Brasil. O CresceNet tem um acelerador de conexão, que deixa sua conexão até 10 vezes mais rápida. Quem utiliza banda larga pode lucrar também, basta se cadastrar no CresceNet e quando for dormir conectar por discada, é possível pagar a ADSL só com o dinheiro da discada. Nos horários de minuto único o gasto com telefone é mínimo e a remuneração do CresceNet generosa. Se você quiser linkar o Cresce.Net(www.provedorcrescenet.com) no seu blog eu ficaria agradecido, até mais e sucesso. (If he will be possible add the CresceNet(www.provedorcrescenet.com) in your blogroll I thankful, bye friend).