बुधवार, सितंबर 26, 2007

Gulzar saab's new nazms on his birthday

जाते जाते एक छोटी सी नज़्म आप लोगों के लिये

अबे इसे पता नहीं क्या कहेंगे आप ऐसी नज़्म को...
देखने में पाजी लगती है.. वैसे है नहीं
या फिर देखने में नहीं लगती पर है पाजी....


ये बूढ़े लोग अजब होते हैं

छाज में डाल के
माज़ी के दिन
कंकर चुन कर
दांत तले रख कर उनको
फिर से तोड़ने की कोशिश करने लगते हैं

तीस बरस की उमर मे जब हुआ दांत ना टूटा
सत्तर साल की उम्र मे तो दांत ही टूटेगा

-*-

नये नये ही चाँद पे रहने आये थे
हवा ना पानी, गर्द ना कूड़ा
ना कोई आवाज़, ना हरक़त
ग्रेविटी पे तो पाँव नहीं पड़ते हैं कहीं पर
अपने वतन का भी अहसास नही होता

जो भी घुटन है जैसी भी है,
चल कर ज़मीं पर रहते हैं
चलो चलें, चल कर ज़मीं पर रहते हैं

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…


Great!Yet againn.