बुधवार, अप्रैल 16, 2008

खर्ची

मुझे खर्ची में पूरा एक दिन, हर रोज़ मिलता है
मगर हर रोज़ कोइ छीन लेता है,
झपट लेता है अण्टी से!

कभी खीसे से गिर पढ़ता है तो गिरने की
आहट भी नहीं होती,
खरे दिन को भी मैं खोटा समझ के भूल जाता हूं!


गिरेबान से पकड़ के मांगने वाले भी मिलते हैं
"तेरी गुज़री हुई पुश्तों का कर्ज़ा है,
तुझे किश्तें चुकानी हैं--"

ज़बर्दस्ती कोई गिरवी भी रख लेता है, ये कह कर,
अभी दो चार लम्हे खर्च करने के लिये रख ले,
बक़ाया उम्र के खाते में लिख देते हैं,
जब होगा, हिसाब होगा

बड़ी हसरत है पूरा एक दिन, इक बार मैं
अपने लिये रख लूं

तुम्हारे साथ पूरा एक दिन, बस खर्च करने कि तमन्ना है!!

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