रविवार, सितंबर 07, 2008

"विज्ञान की रंगोली, साहित्य के झरोखे से" : Gulzar saab at IISc

गये हफ़्ते गुलज़ार साब पहुंचे भारतीय विज्ञान केन्द्र, बंगलौर, (I.I.Sc.) संस्था के शताब्दी समारोह में भाग लेने के लिये.. उनकी चर्चा का विषय बड़ा अनूठा था, "विज्ञान की रंगोली, साहित्य के झरोखे से".. संस्था से शोध कर रहे श्रीराम यादव ने कार्यक्रम का बयान कुछ इस तरह से दिया है..

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"विज्ञान की रंगोली, साहित्य के झरोखे से"

दोस्तो,

ये एक अनोखा अनुभव था, जब हम सभी ने गुलज़ार साब का वैज्ञानिक रूप देखा. ये वक़्त था जब गुलज़ार साब ने IISc के शताब्दी लैक्चर सीरीज़ में एक साहित्यकार के हैसियत से अपना वैज्ञानिक मूड सामने रखा. अभी तक तो हम उनकी शायरी में कुछ कोस्मोस का ज़िक्र होते हुए देखा किये थे, यह पहला मौक़ा था जब एक शायर के नज़रिये से पूरे का पूरा क़ायनात उनके ज़िक्र में देखा.

28 अगस्त, 2008, शाम 4 बजे, जब IISc के लोगों से भरा जे. एन. टाटा सभागार, गुलज़ार साब का इन्तज़ार कर रहा था. सभी की निगाहें उस दरवाजे की तरफ़ थीं, जहां एक पर्दा लगा हुआ था. जैसे ही गुलज़ार साब ने स्टेज पर क़दम रखा, पूरे IISc परिवार ने अपनी सीट पे खड़े हो कर तालियों से स्वागत किया. इन्जीनियरिंग विभाग के डीन, प्रो. बिस्वास, और आधिकारिक भाषा विभाग के मुख्य अधिकारी, प्रो. रूद्र प्रताप ने गुलज़ार साब का अभिवादन किया. आखिर वो लम्हा आया जिसका इन्तज़ार पिछले ६ महिनों से था. जब गुलज़ार साब माईक पे सबके सम्मुख प्रस्तुत हुए. एक बार फिर से पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा.


गुलज़ार साब ने अभिवादन स्वीकार किया और थोड़ा अपने पढ़ाई के दिनों का ज़िक्र करते हुए अपना लैक्चर शुरु किया.

"जब मैं विज्ञान और कला के चयन की जद्दो-ज़हद में फ़ंसा तो विज्ञान इसलिये नहीं लिया क्योंकि उसमें बहुत मेहनत करनी पड़ती है, हार्ड वर्क करना पड़ता है और मैं हार्डली वर्क करता था". "पढ़ाई लिखाई में जो कमी रह गयी थी वो अब लिखकर पूर कर रहा हूं और खड़ा रहने की आदत तो बचपन में टीचर्स ने ही डाल दी थी. बाद में जब कोस्मोस की स्टडी की तो विज्ञान ना पढ़ने का थोड़ा दुख हुआ."


जब हम वैज्ञानिकों के सामने विज्ञान की बिग-बैन्ग थ्योरी को अपने नजरिये से पेश किया तो पूरा सभागार खुश और हैरान हो गया. लाइफ़ के ईवोल्युशन, सैल कैसे बना और कैन्सर क्या होता है गुलज़ार साब ने बहुत ही खूबसूरत अन्दाज़ में बयां किया.

अपनी नज़्म 2085 में बड़ी एनेर्जी और छोटी एनेर्जी के गुफ़्तगु को क्या खूब बयां किया उन्होने.
उनके अनुसार, वैज्ञानिक और साहित्यकार काफी सिमिलर होते हैं, वैज्ञानिक को फ़ैक्ट्स सर्च करके लिखना पड़ता है और साहित्यकार को महसूस करके.

दोनो के अन्तर पर एक ही नज़्म के दो हिस्से बयां किये

वैज्ञानिक:

"मेरी ख़ुदी को मारना चाहा तुमने चंद चमत्कारों से
और मेरे एक प्यादे ने चलते चलते
तेरा चांद का मोहरा मार लिया"

शायर:
"मौत को शह देकर तुमने समझा था अब तो मात हुई
मैने जिस्म का खोल उतार कर सौंप दिया, और रूह बचा ली"

"पूरे का पूरा आकाश घुमा कर अब तुम देखो बाज़ी"
[पूरी नज़्म : http://groups.yahoo.com/group/gulzarfans/message/5456]

बारी थी एक और मज़ेदार अन्तर की.. उन्होने सभागार मे उपस्थित लोगों से पूछा चांद पर पहला क़दम किसने रखा था.. सब के सब के पास जवाब था "नील आर्मस्ट्रांग"

फिर पूछा "दूसरा शख्स कौन था"
इस बार जवाब कुछ लोगों तक सिमट गया "एडविन एल्ड्रिन"





दलील कि दोनो वैज्ञानिक एक ही साथ पहुंचे, केवल एक क़दम का फ़ासला था, फिर भी दूसरे का नाम कम लोग जानते हैं.. एक और शख्स था जो राकेट में ही रहा, नीचे नहीं उतरा.. कौन था वो.. कभी आपने उसके बारे में सोचा? उसके दिल पे क्या गुजरी होगी. क्या उसकी उपलब्धि किसी से कम थी?.. शायर उसके बारे में भी सोचता है, जिसे वैज्ञानिक अहमियत नहीं देते.. उनको फ़ैक्ट्स चाहिये मगर कवि उन फ़ैक्ट्स पे नहीं जीता, बल्कि उनकी शैडोज तक भी पहुंचता है.


उनकी इस मज़ेदार चर्चा के बाद बारी आयी रूबरू सवाल जवाब की.. बज़्म.ए.गुलज़ार में
इस प्रोग्राम का स्वरूप बहुत ही खुला रखा गया था.. कुछ मज़ेदार सवाल जवाब पेश हैं

स: गुलज़ार साब, दिल और दिमाग़ में शायर दिल को ज्यादा अहमियत देता है जबकि भावनयें दिमाग़ में पैदा होती हैं और उनका दिल से कोई रिश्ता नहीं?

ज: जब दिमग काम करना बंद कर दे तो भी इन्सान को मुर्द क़रार नहीं दिया जाता जबकि दिल के रुकते ही उसे मुर्दा ठहरा दिया जाता है

स: कभी आपकी ज़िन्दगी में दिल-ओ-दिमाग़ में तक़रार हो तो कौन जीतता है?

ज: शेर,
"मैं दिल को और दिल मुझे समझाता है
यहां कोई किसी की नहीं सुनता"


स: अगर आप शायर नहीं होते तो क्या होते?
ज: मेरी पत्नी कहती है, अगर तुम शायर नहीं होते तो बहुत ही आर्डिनेरी इन्सान होते

स: आप इतनी गहराई से कैसे लिख लेते हैं?
ज: गहराई अपने अनुसार ही डिफ़ाइन करना होता है, समुन्दर या पहाड़

स: उर्दू जबान खत्म हो रही है?
ज: कौन कहता है मुझे तो बढ़ती नज़र आ रहि है. पार्टीशन के बाद उर्दू को एक मुल्क़ (पाकिस्तान) मिल गया. कभी आपने सिन्धी के बारे में सोचा, जिनका मुल्क़ भी छिन गया और जुबान भी.

"मैं जितनी भी ज़बानें जानता था, वो सारी आज़माईं हैं
ख़ुदा ने एक भी समझी नहीं अब तक
.........
.........
"पढ़ा लिखा अगर होता खुदा अपना
न होती गुफ़्तगु तो कम से कम
चिट्ठी का आना जाना तो लगा रहता"



स: फ़िल्में समाज को कैसे अफ़ैक्ट करती हैं? जो घटनायें दिखयी जाती हैं...


आ. फ़िल्म समाज को उतन अफ़्फ़ैक्ट नहीं करतीं जितना समाज फ़िल्म को अफ़ैक्ट करता है. फ़िल्म तो बस समाज की ही बातें पेश करती हैं, थोड़ा सा वोल्यूम बढा कर. कुछ घटनायें असली ज़िन्दगी में इतनी डरावनी होती हैं कि फ़िल्म पे भी उतारा नहीं जा सकता. क़श्मीर की गली आप से रात के सन्नाटे में गुज़रें, कोई नहीं हो, फिर भी आपकी जो हालत होगी उसे फ़िल्म में नहीं उतारा जा सकता. (फ़िल्म में कम से कम बैक ग्राऊण्ड म्युसिक होता है)

"मकान की ऊपरी मंज़िल पर
अब कोई नहीं रहता,
कमरे बन्द हैं कब से.
जो चौडी सीढियां उन तक पहुंचती थी,
वो अब ऊपर नहीं जाती.
मकान की ऊपरी मंज़िल पर
अब कोई नहीं रहता
...............
उसी मन्ज़िल पे एक पुश्तैनी बैठक थी
जहां पुरखों की तस्वीरें टंगी थी
मैं सीधा करता रहता था
हवा फ़िर टेढा कर जाती
बहू को मून्छो वाले सारे पुरखे
क्रिएचर लगते थे,
मेरे बच्चों ने आखिर उनको कीलों से उतारा
पुराने न्यूज़ पेपर में
महफ़ूज़ करके रख दिया था,
मेरा एक भांजा ले जाता है
फ़िल्मों में कभी सेट पर लगाता है
किराया मिलता है उनसे.
..............
मेरी मंज़िल पे मेरे सामने मेहमानखाना है
मेरे पोते कभी अमरिका से आयें तो रुकते हैं
अलग साइज़ में आते हैं,
जितनी बार आते है
खुदा जाने वो ही आते हैं या
हर बार कोई और आता है
.................
"
[पूरी नज़्म : http://gulzars.blogspot.com/2007/08/gulzar-at-world-hindi-conference.html]


स: "मैं शायर तो नहीं, मगर तुमको देखा तो शायरी आ गयी" में आप कितना विश्वास करते हैं?
ज: ये तो आपके विश्वस की बात है, मेरे लिये तो काम्प्लिमेंट हो, मगर और कोई आपसे खफ़ा हो जयेगा.

स: नये गीतकरों में आप किसको अपनी विरासत सौंपना चाहेंगे
ज: अभी तो मैं हूं.:)






स: आर्ट्स लोग इसलिये आप्ट नहीं करते, क्योंकि सोशल प्रेशर और स्टेटस
ज: ये आप्शन की बात है, अगर आप्शन है तो पथ्हर की हवेली हो, शीशे के घरोन्दा और तिनकों का नशेमन.

स: आप अपने सोन्ग्स में इतना वेरिएशन कहां से लाते हैं
ज: फ़िल्म के स्क्रिप्ट से, जो किरदार जो जुबान बोलता है, गीत वैसे हि लिखे जाते हैं अब गैन्गस्टर है यही कहेग "गोली मार भेजे में" य ओंकारा में जो पश्चिम यू पी के किरदर थे वो "बिड़ी जलाइलो या नमक इश्क़ का" की भाषा

इसके अलावा बहुत से सवाल उठे, खूबसूरत जवाबों के साथ लौटाये.. अभी इस पल सभी का ज़िक्र करन मुश्किल होगा.. 3.5 घन्टे कैसे बीते पता ही नहीं चला.. बाद में गुलज़ार साब ने बैठ कर, बड़े इत्मिनान से हर शख्श को औटोग्राफ दिया, सबको फोटो का मौका मिला, और सबसे बातें की.हर शख्श ने उन्हें छूकर महसूस किया. गुलज़ार साब IISc के इतिहास में एक विशेष व्यक्तित्व और साहित्यकार की हैसियत से अपना नाम दर्ज़ कर चुके हैं.


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शुक्रिया श्रीराम इस खूबसूरत शाम के बयां के लिये

13 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

मज़ा आ गया।

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सही--आनन्दित कर दिया....


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श्रीकांत पाराशर ने कहा…

achhi khurak dene ke liye dhanywad.padhkar achha laga.

पारुल "पुखराज" ने कहा…

bahut badhiyaa...

बेनामी ने कहा…

श्रीराम यादव और पवनजी को हार्दिक धन्यवाद इस खुशबू को प्रसारित करने के लिए ।

Manish Kumar ने कहा…

वाह ! गुलज़ार जी की बेहद प्यारी बातें आप के माध्यम से हम तक पहुँची। बहुत बहुत शुक्रिया आपका

मसिजीवी ने कहा…

अरे वाह।।  गुलज़ार साहब करे रूबरू सुनना बहुत आनन्‍द देता है। हमारे कॉलेज में भी गुलज़ार साहब का आना हुआ था जिसका ब्‍यौरा हमने यहॉं दिया था।

Straight Bend ने कहा…

Shukriya.

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा ने कहा…

गुलजार साहब से एक और साइबर मुलाकात करवाने का शुक्रिया

Sili Nazme ने कहा…

aadab Pavan Bhaiyaa
Its great experience to agian Roo-Ba-roo with Gulzar Sir
Shukriya
With Regards
Anil Jeengar

बेनामी ने कहा…

thanks sir.....

बेनामी ने कहा…

Heart felt thanks dear Pavan.

Jete raho.......

सुमित् ने कहा…

तारीफ के अन्दाज़ से बाहर.

बहुत बहुत शुक्रिया आपका.