रविवार 12 अप्रैल, स्थान-राजेन्द्र गुप्ता जी की बगीची, चौपाल फिर से जमी. मगर इस बार बहुत ही खास मक़सद के साथ. गुलज़ार साब की ऑस्कर जीत का जश्न मनाने और गुलज़ार साब को इस उपलब्धि के लिये सम्मानित करने के लिये. और जब गुलज़ार साब आमंत्रित हों तो चौपाली रसिकों का एक मक़सद अपने आप जुड़ जाता है, उनको जी भर के सुनने का । तो साहेबान महफ़िल जमी और क्या खूब जमी। मुम्बई की उमस भरी गर्मी को मात देते हुए पसीने से तरबतर 150 के ऊपर, चौपाली रसिक सुरों और कविताओं की बौछार से 5 घंटे तक सराबोर होते रहे।
महफ़िल की शुरुआत हुई गज़ल गायिका सीमा सहगल के गायन से जिन्होने गुलज़ार साब के शब्दों (यार जुलाहे) को धुन और आवाज़ में बांध कर प्रस्तुत किया। जावेद सिद्दिकी साब, अपनी बेटी लुबना, दामाद सलीम आरिफ़ और नातियों फ़राज़ और फ़ैज़ी(तहरीर में ईदगाह का हामिद) के साथ प्रस्तुत थे और तीनों पीढियों ने गुलज़ार साब को अपने अपने ढंग से प्रस्तुत किया.. जावेद साब ने गुलज़ार साब के बहुआयामी व्यक्तित्व के कुछ जाने और कुछ अनजाने पहलुओं का जिक्र किया। लुबना और सलीम की जोड़ी ने गुलज़ार साब द्वारा लिखित नाटक "खराशें" के कुछ अंश प्रस्तुत किये वहीं फ़ैज़ी ने बच्चों की कविता से बहुत तालियां बटोरी।
साहित्यकार विश्वनाथ सचदेव ने गुलज़ार साब के साथ बांटे गये मज़ेदार लम्हों की याद ताज़ा की । पूना से आये फ़िल्म इन्स्टीट्यूट FTII के निदेशक (धुनों की यात्रा के लेखक) पंकज राग ने अपनी किताब से कुछ अंश पढ़ कर सुनाये। किशोर कदम (सौमित्र) ने गुलज़ार साब की डायरी का काव्य पाठ किया तो शेखर सेन ने उनके कुछ फ़िल्मी गीत सुनाये । हास्य और व्यंग के एक वर्तमान हस्ताक्षर सुभाष काबरा ने अपने गुलज़ार साब पे केन्द्रित एक मज़ेदार व्यंग पाठ "हाय, हम गुलज़ार ना हुए" से चौपाल की सभा को एक नया माहौल दिया । फिर बारी थी स्टेज पे आने की भूपेन्द्र की और शुरुआत की उन्होने "थोड़ी सी ज़मीन, थोड़ा आसमां" के साथ और उनके गाते गाते शब्द भूलने का पुरुस्कार श्रोताओं को मिला एक अनूठी जुगलबन्दी के साथ, भुपेन्द्र और विशाल भारद्वाज के साथ... दर-असल भूपी जी को, विशाल श्रोताओं के बीच में से बार बार सही शब्द याद दिला रहे थे... गुलज़ार साब ने विशाल को स्टेज पे धकेल दिया और विशाल और भूपी जी ने "बादलों से काट काट कर" और "तेरे जाने से कुछ बदला नहीं" को जुगलबंदी में पेश कर सबका मज़ा दोगुना कर दिया।
इनके गायन के बाद वो पल आया, जिसके लिये ये महफ़िल सजाई गई। कार्यक्रम का संचालन कर रहे चौपाल के "एंकर" अतुल तिवारी ने गुलज़ार साब को सम्मानित करने के लिये मंच पे आमंत्रित किया पुष्पा भारती जी (स्व. धर्मवीर भारती की पत्नी) को । पुष्पा जी ने गुलज़ार साब को ट्रॉफ़ी प्रदान कर सम्मानित किया और चौपाल के इतिहास में एक यादगार पल की प्रविष्टी कर दी ।
अशोक बिन्दल (जिनको ट्रॉफ़ी की खूबसूरती का श्रेय भी जाना चाहिये) ने गुलज़ार साब को अपनी कविता "ठहरी हुई आवाज़" समर्पित की। ट्रॉफ़ी पर पवन की ऑस्कर जीत की एक त्रिवेणी अंकित थी, जिसको मंच पे पढ़ा गया।
"ये सोना जो इतना चमक रहा है
अपनी किस्मत पे इतरा रहा है शायद!
तेरे नूर के आगे फिर भी फीका है।"
चित्रकार चरण शर्मा ने गौतम बुद्ध पर बनाई एक विशेष पेंटिंग और उनकी पुस्तक गुलज़ार साब को प्रस्तुत की।
गुलज़ार साब ने चौपाल परिवार का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि चौपाल उनका परिवार है और ऑस्कार से ज्यादा खुशी इस बात से है कि उनका चौपाल जैसा परिवार है ।
पुष्पा जी ने धर्मवीर भारती जी का गुलज़ार साब पे कई वर्षों पहले लिखा एक लेख पढ़ कर प्रस्तुत किया।
और बारी आई गुलज़ार साब के काव्य-पाठ की, और अगले एक घंटे तक अपनी नज़्मों की बौछार से गुलज़ार साब ने श्रोताओं को सराबोर कर दिया। एक के बाद एक नज़्मों की बौछार चली जिनमें "खुदा", "कितनी गिरहें", "पूरे का पूरा आकाश", "चिपचिपे दूध से नहलाते", और "सिद्दार्थ" शामिल थी।
बारिश थमी भी ना थी कि रेखा भारद्वाज, जिनके गायन की बहुत पब्लिक डिमांड थी, ने "इश्क़ा इश्क़ा" से "तेरे इश्क़ में" और "तेरी रज़ा" सुना कर श्चौपाल के रसिकों को वाह वाह कहने पे मज़बूर कर दिया। कार्यक्रम के अंत में प्रस्तुति दी अनिल-सीमा सहगल की बेटी पार्वती ने, जिसने गुलज़ार साब की नज़्म को अपनी धुन के साथ प्रस्तुत किया। 5 घंटे के बाद भी किसी की इच्छा नहीं थी कि ये यादगार शाम कभी खत्म हो।
कुछ तस्वीरें पेश हैं (अशोक बिन्दल, मोहित कटारिया, भीम सिंह, अंशुल चौबे और प्रेरक व्यास के सहयोग से) :
12 टिप्पणियां:
bahut khoob pavanji,
Ek baar phir aapne chaupaal ke beete lamhon ko aankhon ke saamne kheench diye hain, aur jab bhee in palon ko jeena ho, vaapas yaha aa sakta hoon.
ek baar phir dhanywaad.
JAI HO :)
वाह! मस्त.
BAHOOT KHOOB,
RASIKO KO RAS, AUR HAMKO RASO KA RAS.
BAHOOT KHUB
bahut achha laga Pavan Ji photographs dekhkar aur apki post padhkar
main samajh saqta hun, us moments ke baare men
Triveni bahut pyari hai
apko dhanyabad
shri ram
पवनजी
चोपाल की खबर पढ़कर मन प्रफ़ुलित हो गया |
मेरी छोटी बहन कामना और बिल्लोरे जी हमेशा चोपाल मे जाते है और अधिकतर वाहा के गरिमामय कार्यक्रम की चर्चा और सराहना करते है ,
किंतु आज गुलजार जी का कार्यक्र्म और फोटो देखकर असीम आनन्द हुआ .आपको भूत भूत धन्यवाद एव्म बधाई |
शोभना चौरे
वाह वाह .....................क्या बात हैं ......................जय हो
ज़री वाले नीले आसमाने के तले "चाँद" और "सितारों" की महफ़िल .. जय हो .. :)
shukriya is report ko yahan pesh karne ka
thanx Pavan Bhaiya
gr8 Maza aa gaya
choupal main phir se purani yade taza ho gai jaipur ki..
again thanx
Anil Jeengar
पवन जी, मुझे नहीं पता था कि कविता के कीटाणु आपके शरीर में भी घुस चुके हैं! अब इन्हें वहीं रहने दें और फलने फूलने दें.
रिपोर्ट बहुत बढिया है. लगा जैसे हम भी वहीं पहुंच गए.द्
बहुत खूब पवन जी, चौपाल में न होते हुए भी आपने हमें वहां पहुंचा दिया
bahut khoob pavanji,
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