ज़रा पैलेट सम्भालो रंगोबू का
मैं कैनवास आसमां का खोलता हूं
बनाओ फिर से सूरत आदमी की!
साथ में एक और रंग बोनस में.. ईद के चाँद पर होली का रंग!
जहां नुमा एक होटल है नां...
जहां नुमा के पीछे एक टी.वी. टॉवर है नां...
चाँद को उसके ऊपर चढ़ते देखा था कल!
होली का दिन था
मुंह पर सारे रंग लगे थे
थोड़ी देर में ऊपर चढ़ के
टांग पे टांग जमा के ऐसे बैठ गया था,
होली की खबरों में लोग उसे भी जैसे
अब टी.वी. पर देख रहे होंगे!!
Source : Dainik Bhaskar, March 10, 2009, Page 17 link
4 टिप्पणियां:
आनन्द आ गया गुलजार साहब को पढ़कर.
आपको होली की मुकारबाद एवं बहुत शुभकामनाऐं.
सादर
समीर लाल
बहुत सुंदर ... होली की ढेरो शुभकामनाएं।
जी, गुलजार साहब तो जहां भी लिखते हैं वहां हम उन्हें ढूंढ ही लेते हैं। ये भी बहुत खूब लिखा है उन्होंने।
गुलज़ारफ़ैन्स पे हेमन्त से पता चला कि ये जहांनुमा होटल भोपाल वाला हो सकता है और एक टी.वी. टॉवर भी उसके पीछे स्थित है...
सर से पूछा तो तो उन्होने बताया कि बिल्कुल ठीक फ़रमाया, ये भोपाल का ही मंज़र है.. ईद के चांद पर होली का रंग..
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