शनिवार, जनवरी 03, 2009

गुलज़ार साब की ओर से नया साल मुबारक़

इस बार नये साल का स्वागत करने पूर्व संध्या पर गुलज़ार साब दूरदर्शन पर देशवासियों से मुख़ातिब हुए.. थोड़ी पशोपेश में थे, क्युंकि मुम्बई धमाकों की टीस अभी तक गयी नहीं है और दूसरी तरफ़ चांद फ़तेह करने की खुशी.. कार्यक्रम की थीम थी "नये चांद की नयी सुबह".. गुलज़ार साब ने पूरे देश के लिये अपना बधाई संदेश दिया है


दोस्तो, साथियों और देशवासियों,

आप सबको नया साल मुबारक़ गये साल को अलविदा , नये साल को ख़ुशामदीद, वैलकम
आप सबको मुबारक़...

पिछले साल में ये ज़रूर हुआ कि कुछ खेलकूद में, कुछ छीनाझपटी में, कुछ लड़ाई-झगड़े में कहीं कहीं से
उसकी पोशाक़ फट गयी.. कहीं कहीं से सीवन उधड़ गयी.. लेकिन हर बार पुराना लिबास तो उतारना पड़ता है,
पुराना साल निकालना पड़ता है और नया साल पहनना पड़ता है.
इस साल फिर हमेशा की तरह ये दुआ ज़रूर करते हैं कि आपका साल सुख, शान्ति, चैन और सुकूं के साथ गुज़रे..
कोशिश यही करेंगे कि इस साल भी आपकी कहीं से ज़ेब ना फटे, कहीं से दामन ना उधड़े, कहीं से सीवन ना जाये और
ये 365 दिन आने वाले तरक्की के साथ गुज़रें.. आप तरक्की करते रहें आगे सब बढ़ते रहें..

उत्साह और उम्मीद की ये हालत है हर हिन्दुस्तानी की उसकी निगाह चांद पर है.. बल्कि ये कहना चाहिये कि एक क़दम चांद पर है और निगाह उससे आगे.. आप सब को चांद पे ये चढाई, ये फ़तेह मुबारक़ हो, और नया साल फिर से
मुबारक़!



नये साल का स्वागत और बधाई संदेश देने के बाद गुलज़ार साब ने चांद के कुछ राज़ शेयर किये अपनी नज़्मों से

देखिये साब हिंदुस्तानियों को तो अब ये आदत हो गयी है कि चांद वो इसी तरह से उड़ाते हैं जैसे पक्के मांजे के साथ बांध कर पतंग उड़ाते हैं...

हम चांद के घर जाते हैं, चांद हमारे घर आता है और जिस तरह से आता है मैं आपको पेश करूं


जब जब पतझड़ में पेड़ों से पीले पीले पत्ते मेरे लान मे आकर गिरते हैं
रात में छत पर जाकर मैं आकाश को तकता रहता हूं
लगता है एक कमज़ोर सा पीला चांद भी शायद
पीपल के सूखे पत्ते सा लहराता लहराता मेरे लान में आकर उतरेगा


चांद के आने का एक और अन्दाज़

गर्मी से कल रात अचानक आंख खुली तो
जी चाहा कि स्विमिंग पूल के ठंडे पानी में एक डुबकी मार के आऊं
बाहर आके स्विमिंग पूल पे देखा तो हैरान हुआ
जाने कब से से बिन पूछे इक चांद आय और मेरे पूल मे लेटा था और तैर रहा था
उफ़्फ़ कल रात बहुत गर्मी थी



एक और सुनिये

एक नज़्म मेरी चोरी कर ली कल रात किसी ने
यहीं पड़ी थी बालकनी में
गोल तिपाही के ऊपर थी
व्हिस्की वाले ग्लास के नीचे रखी थी
नज़्म के हल्के हल्के सिप मैं
घोल रहा था होठों में
शायद कोई फोन आया था
अन्दर जाकर लौटा तो फिर नज़्म वहां से गायब थी
अब्र के ऊपर नीचे देखा
सूट शफ़क़ की ज़ेब टटोली
झांक के देखा पार उफ़क़ के
कहीं नज़र ना आयी वो नज़्म मुझे
आधी रात आवाज़ सुनी तो उठ के देखा
टांग पे टांग रख के आकाश में
चांद तरन्नुम में पढ़ पढ़ के
दुनिया भर को अपनी कह के
नज़्म सुनाने बैठा था


शुक्रिया!



- गुलज़ार

8 टिप्‍पणियां:

Vinay ने कहा…

बहुत ख़ूब, क्या बात है, मैंने भी देखा था यह शो, तुमने तो एक-एक शब्द छाप डाला, बिना ग़लती किए! धन्यवाद!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

आज के दौर के एक अज़ीम तरीम शायर के अल्फाज़ हम तक अनैइन्टरप्टेड पहुँचाने का
शुक्रिया भाई साहब
और आपको
गुलज़ार सा'ब औ'
हमारी भी
नये साल की बधाई
- लावण्या

कुश ने कहा…

जबरदस्त... ब्लॉग के नाम के अनुरूप आपने खुश्बू बिखेर दी.. गुलज़ार साहब की

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने कहा…

इतनी खूबसूरत चीज़ें, लफ्ज़ों की सौगात- हम तक पहुंचाने के लिए शुक्रिया.

अनूप भार्गव ने कहा…

’एक नज़्म मेरी चोरी कर ली कल रात किसी ने’ -

बहुत अच्छी लगी । गुलज़ार साहब ही कल्पना की इस सीमा तक पँहुच सकते हैं । इसे ’ईकविता’ समूह में अपने दोस्तों के साथ बाँट रहा हूँ ।
धन्यवाद

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

रात,खो गया मेरा दिल....!!

कल रात ही मेरा दिल चोरी चला गया,
और मुझे कुछ पता भी ना चला,
वो तो सुबह को जब नहाने लगा,
तब लगा,सीने में कुछ कमी-सी है,
टटोला,तो पाया,हाय दिल ही नहीं !!
धक्क से रह गया सीना दिल के बगैर,
रात रजाई ओड़ कर सोया था,
मगर रजाई की किसी भी सिलवट में,
मेरा खोया दिल ना मिला,
टेबल के ऊपर,कुर्सी के नीचे,
गद्दे के भीतर,पलंग के अन्दर,
किसी खाली मर्तबान में,
या बाहर बियाबान में,
गुलदस्ते के भीतर,
या किताब की किसी तह में,
और आईने में नहीं मिला मुझे मेरा दिल !!
दिल के बगैर मैं क्या करता,
घर से बाहर कैसे निकलता,
मैं वहीं बैठकर रोने लगा,
मुझे रोता हुआ देखकर,
अचानक बेखटके की आवाज़-सी हुई,
और जब आँखे खोली,
तो किसी को अपने आंसू पोंछते हुए पाया
देखा तो,
सामने अपने ही दिल को
मंद-मंद मुस्कुराते पाया,
दिल से लिपट गया मैं और पूछा उसे,
रात भर कहाँ थे,
बोला,रात को पढ़ी थी ना आपने,
गुलज़ार साहब की भीगी हुई-सी नज़्म,
मैं उसी में उतर गया था,
और रात भर उनकी नज्मों से
बहुत सारा रस पीकर
मैं आपके पास वापस आ गया हूँ.....!!

Rakesh Raj ने कहा…

KAL RAAT BHAR MAIN AASMAAN SE MEETHE SITAARE CHUNTA RAHA
RAAT BHAR HUMNE SAPNE BATORE AUR SUBAH SAB KE SAB JALA DALE

Rakesh Raj ने कहा…

mein GULZAR SAHAB KA BAHUT BADA FAN RAHA HOON, MEIN HAMESHA UNKI KAVITA SUNTA HOON, AB EK AADAT SI HO HO GAYI HAI, HAAL HI MEIN MAINE UNKI EK PRASIDH NATAK "KHARASHEIN" KA MANCHAN APNE COLLEGE ME KARWAYA.. EK SAWAL YA SANDESH AAP JO SAMJHE MAI BHEJNA CAHUNGA UNKE LIYE.. PRASTUT HAI

"sone ki chidyan" thi jo, kyun sona uske paas nahi.
hai ganga bahti yahan agar, phir bhujti kyun hai pyaas nahi.
hum dur hai kitne nikal gaye , ki milne ki phir aas nahi.
hum kahne ko aajad hue, aajadi apne paas nahi